जागरण संपादकीय: शत्रु न चैन से रहेगा-न रहने देगा, ठंडे दिमाग से पाकिस्तान का शर्तिया इलाज जरूरी

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Written by
Kumar Praveen

राजीव सचान। भारत के प्रति घृणा में डूबे पाकिस्तान ने पहलगाम में भीषण आतंकी हमला करा कर यही साबित किया कि वह न तो खुद चैन से रहेगा और न हमें रहने देगा। पहलगाम के पहले 2013 में नैरोबी के एक माल और 2016 में ढाका के एक कैफे में जिहादियों ने लोगों से कलमा (मुस्लिम होने की जरूरी निशानी) सुनाने की मांग कर हत्या की थी। क्या आतंक का मजहब होता है? इस पर बहस होती रहेगी, लेकिन इस पर बहस की गुंजाइश नहीं कि इन हमलों को अंजाम देने वाले मजहबी प्रेरणा से लैस थे।

इसीलिए तो कई मुस्लिम नेताओं ने कहा कि पहलगाम हमले ने हमें शर्मिंदा किया, पर कुछ लोग यह साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं कि आतंकियों ने लोगों का मजहब नहीं पूछा। यह आतंकियों को क्लीनचिट देना है। यह काम पश्चिमी मीडिया भी बेशर्मी से कर रहा है। पश्चिम में शायद ही अधिकांश लोग इस सच से अवगत हों कि पहलगाम में लोगों को उनका मजहब पूछकर मारा गया। पश्चिमी मीडिया की जिहादियों का बचाव करने वाली इस करतूत की कीमत एक दिन पूरा पश्चिम चुकाएगा।

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पहलगाम हमले को सात दिन बीत चुके हैं, लेकिन आतंकियों का पता नहीं। साफ है कि उन्हें किसी ने शरण दे रखी होगी या फिर कोई उन्हें खाना-पानी दे रहा होगा। कोई स्थानीय उनका साथ न देता तो क्या इतना भीषण हमला होता? यदि आतंकी मारे जाएंगे तो मामूली संतुष्टि ही मिलेगी। यदि पकड़े जाएंगे तो पाकिस्तान फिर से बेनकाब होगा, लेकिन उसकी बेशर्मी पर असर नहीं पड़ेगा। आखिर मुंबई हमले में कसाब के पकड़े जाने से भी उसकी सेहत पर असर नहीं पड़ा।

यदि पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक की जाती है तो वह कुछ डरेगा, लेकिन फिर वही करेगा, जो उसने मुंबई, उड़ी, पठानकोट, पुलवामा और पहलगाम में किया। वह नए-नए तरीकों से हमले करेगा। जैसे उसने पहलगाम में किया। आम धारणा थी कि आतंकी सेना, पुलिस, कश्मीरी पंडितों, गैर कश्मीरियों और हिंदू तीर्थयात्रियों को ही निशाना बनाते हैं, लेकिन पर्यटकों को नहीं। इस बार उन्होंने पर्यटकों में हिंदू चुन कर मारे। एक मुस्लिम और एक ईसाई भी उनके हाथों मारे गए। शायद इसलिए, क्योंकि जिहादी अपने दुश्मनों के साथ वालों के बारे में यही मानते हैं कि वे भी उन्हीं में से हैं। इसीलिए अतीत में तमाम कश्मीरी मुस्लिम भी उनके निशाने पर आए।

चूंकि यह मान लिया गया था कि आतंकी पर्यटकों को निशाना नहीं बनाते, इसलिए उनकी सुरक्षा पर जरूरी ध्यान नहीं दिया गया। सुरक्षा में चूक के जो सवाल उठ रहे, वे जायज हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे सवाल उठा रहे, जैसे सरकार ने पूरी चौकसी न बरतकर आतंकियों को पर्यटकों को मारने का लाइसेंस दे दिया। हर आतंकी हमले के पीछे कहीं न कहीं सतर्कता में कमी होती है।

9/11 के समय भी थी, 26/11 के वक्त भी थी और 22 अप्रैल को पहलगाम में भी थी। कश्मीर में चौकसी बढ़ाने से हमले कम तो हो सकते हैं, पूरी तरह खत्म नहीं होंगे। यह एक तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर में रह-रहकर आतंकी हमले हो ही रहे थे। पाकिस्तानी सेना जब तक हिंदू भारत से घृणा पर पलती रहेगी, तब तक वह जिहादी भेजती रहेगी। लश्कर, जैश के जिहादी पाकिस्तानी सेना के बिना वर्दी वाले सैनिक ही हैं।

पहलगाम हमले के बाद देश गुस्से में उबल रहा है, लेकिन पाकिस्तान का ठंडे दिमाग से शर्तिया इलाज करना होगा, ताकि फिर कभी मुंबई, उड़ी, पुलवामा, पहलगाम न हो। कोई भी दल या सरकार हो, उसे यह सोच बदलना होगा कि पाकिस्तान बिना होश ठिकाने आए सुधर जाएगा। सोच समूचे सरकारी तंत्र को भी बदलना होगा, क्योंकि पहलगाम हमले के बाद पता चला कि कई पाकिस्तानी वीजा अवधि पूरी होने के बाद भी रह रहे थे।

महाराष्ट्र में ऐसे कई मिल नहीं रहे और छत्तीसगढ़ में दो ने छल-छद्म से भारतीय पहचान हासिल कर ली। हमारा तंत्र जाने-अनजाने कैसे-कैसे खतरों की आराम से अनदेखी करता है, इसका उदाहरण है गुजरात में सैकड़ों अवैध बांग्लादेशियों का मिलना।

ये अवैध तरीके से आए और इनमें से तमाम ने बंगाल में फर्जी भारतीय पहचान हासिल कर गुजरात में रोजगार पा लिया। देश में रोजी-रोजगार की यह कैसी कमी है कि उसे अवैध बांग्लादेशी पूरी कर रहे हैं? देश भर में लाखों अवैध बांग्लादेशी हों तो हैरानी नहीं। सरकारी तंत्र में आम भारतीय ही होते हैं। जो नहीं होते, उनकी स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं।

किसी को पाकिस्तानी यूट्यूबरों पर प्रतिबंध का अफसोस है, किसी को सिधु जल समझौते के स्थगन का और किसी को पाकिस्तानी झंडे जलाए जाने का। यह क्या दर्शाता है? यही कि हममें शत्रुबोध की भारी कमी है। किसी अनदेखे खतरे से अनजान रहना समझ आता है, लेकिन जो शत्रु हमारे सामने है, हम पर बार-बार हमला कर रहा है, हमारी एकजुटता को तोड़ना चाहता है, उससे चौकन्ना न होना तो बर्बादी का निमंत्रण है।

यदि हम सचेत होते और शत्रु के शैतानी-जिहादी इरादों को भांप रहे होते तो आज स्थिति दूसरी होती। स्थिति केवल सरकार, सेना और पुलिस आदि को ही नहीं बदलनी, हमें भी बदलनी है। निःसंदेह इतने बड़े देश में सब कुछ आदर्श स्थिति में नहीं हो सकता। पाकिस्तान ने जो गहन संकट खड़ा किया है, उसके कारणों और उससे निपटने के तरीकों को लेकर असहमतियां-विवाद के साथ सरकार की आलोचना-निंदा भी होगी, लेकिन आखिर यह समझने में क्या कठिनाई है कि निशाने पर हम सब हैं?

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